नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता (UCC) 2025 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद निर्धारित की है।
‘लिव-इन रिलेशनशिप’ के प्रावधानों को दी गई चुनौती
भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने जनहित याचिका दायर कर UCC के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी है। याचिका में मुख्य रूप से लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों पर आपत्ति जताई गई है। उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू किए गए कानून के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। बिना पंजीकरण के रहने पर छह महीने की जेल या 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी का आरोप
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि इसके अलावा मुस्लिम, पारसी और अन्य समुदायों की पारंपरिक वैवाहिक पद्धतियों की अनदेखी किए जाने का भी मुद्दा उठाया गया है। इसी तरह, देहरादून निवासी एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने रिट याचिका दायर कर UCC 2025 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी है। उनका तर्क है कि कानून में अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी की गई है, जिससे उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
सरकार को छह सप्ताह में देना होगा जवाब
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह छह सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करे। अदालत अगली सुनवाई में इस मामले पर विस्तृत चर्चा करेगी।
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। हालांकि, इसके कई प्रावधानों को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों से प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, जिन पर अब न्यायालय में सुनवाई जारी है।