नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में जंगलों में लग रही आग को गंभीरता से लेते हुए प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (पीसीसीएफ) को 19 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह भी पूछा है कि 2021 में दिए गए निर्देशों का अब तक कितना पालन हुआ है।

न्यायालय ने तीन साल पुराने मामले को पुनः सूचीबद्ध किया
मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र जे. की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हाल ही में चकराता, देहरादून और पौड़ी के जंगलों में लगी आग का संज्ञान लेते हुए तीन साल पुराने मामले को फिर से सूचीबद्ध किया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वनाग्नि को रोकने के लिए 2021 में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुपालन की विस्तृत रिपोर्ट मांगी जाएगी।
राज्य सरकार ने मांगा समय, न्यायमित्र ने किया विरोध
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा कि इस मामले से संबंधित विशेष अपील सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, इसलिए राज्य सरकार को स्थिति स्पष्ट करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाए। इसका विरोध करते हुए न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने कहा कि यह मामला अलग है और सुप्रीम कोर्ट में लंबित अपील का इससे कोई संबंध नहीं है।

कोविड काल में न्यायालय ने लिया था स्वतः संज्ञान
गौरतलब है कि इस मामले में हाईकोर्ट ने कोविड महामारी के दौरान स्वतः संज्ञान लिया था और वन विभाग में खाली पड़े 65% पदों को छह माह के भीतर भरने, ग्राम पंचायतों को मजबूत करने और जंगलों की सालभर निगरानी करने के आदेश दिए थे।
राज्य सरकार पर निष्क्रियता का आरोप
अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली और राजीव बिष्ट ने अदालत को अवगत कराया कि प्रदेश के जंगल लगातार आग से जल रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 2016 में इसी न्यायालय ने वनाग्नि रोकने के लिए विस्तृत गाइडलाइन जारी की थी।
19 फरवरी को अगली सुनवाई
अब मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी, जिसमें पीसीसीएफ व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होकर वनाग्नि रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देंगे।
