टांडा: मदरसा तालीम के लिए अपनी जिंदगी के 28 साल वक़्फ़ करने वाले हाफिज यासीन अब हमारे दरमियान नहीं रहे। 55 साल की उम्र में उनका इंतकाल हो गया, जिससे इल्मी और मज़हबी हल्कों में ग़म का माहौल है।

हाफिज यासीन ने 1997 में मदरसा तालीम का आग़ाज़ किया था और वह मदरसा जामिया अशरफिया रोज़ातुल उलूम में तालीम देते थे। उनके शागिर्द आज रामपुर जिले के मुख्तलिफ इलाकों में इल्म की शमां रौशन कर रहे हैं। उन्होंने बहुत सादा और पाकीज़ा ज़िंदगी गुज़ारी और हमेशा तालिब-ए-इल्म की रहनुमाई में मसरूफ़ रहे।
26 की रात वे गुजरात से आए थे और 27 की रात मुरादाबाद ले जाए गए। वहां के डॉक्टर्स ने उनकी संगीन हालत देखते हुए दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया, जिसके बाद उन्हें मुरादाबाद कॉसमॉस में भर्ती किया गया। अफ़सोस कि तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
हाफिज यासीन अपने पीछे सात बेटियां और एक बेटा छोड़ गए हैं। उनका इंतकाल इल्म और दीनी तालीम के एक अहम बाब के ख़त्म होने जैसा है। उन्हें उनकी नेकदिली और खिदमत-ए-ख़ल्क़ के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।