निजता बनाम कानून: लिव-इन रजिस्ट्रेशन के प्रावधान को हाईकोर्ट में दी गई चुनौती

उत्तराखंड उच्च न्यायालय में समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता और उसके फॉर्मेट को असंवैधानिक करार देने संबंधी याचिका को अन्य याचिकाओं के साथ क्लब कर दिया गया है। अब इन सभी याचिकाओं पर एक अप्रैल को सुनवाई होगी।

याचिका में दावा किया गया है कि लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण के लिए मांगी जा रही जानकारी निजता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने अदालत में पक्ष रखते हुए कहा कि रजिस्ट्रेशन के लिए पूर्व की कई व्यक्तिगत जानकारियों को भरने की शर्त रखी गई है, जो नागरिकों की निजता के अधिकार का हनन करती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि किसी की निजता में दखल देने का किसी को अधिकार नहीं है।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि इस तरह के नियम पक्षपातपूर्ण हैं, क्योंकि विवाह पंजीकरण के दौरान इस प्रकार की जानकारी नहीं मांगी जाती, जबकि लिव-इन रिलेशनशिप के लिए इसे अनिवार्य किया गया है। याचिकाकर्ताओं में शामिल युवक महाराष्ट्र का निवासी है, जबकि युवती उत्तराखंड के रानीखेत की रहने वाली है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जिसने समान नागरिक संहिता लागू की है। इस कानून के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी दायरे में लाने और इसे नियमित करने के लिए अनिवार्य पंजीकरण का प्रावधान किया गया है। हालांकि, इस प्रावधान को लेकर विभिन्न वर्गों में असंतोष देखा जा रहा है, और इसे चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं उच्च न्यायालय में दाखिल की गई है।

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