हल्द्वानी। इस्लाम के पांच मूल स्तंभों में से एक जकात केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और आर्थिक संतुलन की महत्वपूर्ण कड़ी है। मदीना मस्जिद इंदिरा नगर के इमामे खतीब और मुफ्ती मोहम्मद यूनुस ने जकात की फजीलत (महानता) और उसकी अनिवार्यता पर जोर देते हुए कहा कि यह न केवल अल्लाह की तरफ से दी गई एक खास नेमत (वरदान) है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने का एक सुनहरा अवसर भी है।
मुफ्ती मोहम्मद यूनुस ने कहा, “आज के दौर में, जहां अमीरी और गरीबी के बीच गहरी खाई बढ़ती जा रही है, वहां इस्लाम की यह वित्तीय इबादत (पूजा) एक सामाजिक सुरक्षा तंत्र की तरह काम करती है। यह संपन्न मुसलमानों पर एक धार्मिक जिम्मेदारी है कि वे अपने माल (धन-संपत्ति) में से एक निर्धारित हिस्सा निकालकर जरूरतमंदों की मदद करें।”
जकात की फजीलत और अहमियत
इस्लाम में जकात को अत्यधिक महत्व दिया गया है। कुरआन मजीद में लगभग 32 स्थानों पर जकात का उल्लेख किया गया है, और इसे नमाज़ के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया गया है, जिससे इसकी अनिवार्यता स्पष्ट होती है। मुफ्ती मोहम्मद यूनुस ने कुरआन और हदीस के हवाले से बताया कि अल्लाह ने फरमाया:
“और नमाज़ क़ायम करो और जकात अदा करो और झुकने वालों के साथ झुको।” (सूरह अल-बक़रह 2:43)
इसके अलावा, हदीस शरीफ में भी जकात की अहमियत को बहुत ज्यादा रेखांकित किया गया है। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“जकात इस्लाम का पुल (संरचना) है, अगर तुम इसे छोड़ दोगे, तो इस्लाम की इमारत कमज़ोर पड़ जाएगी।”
मुफ्ती साहब ने कहा कि जकात देने से इंसान का माल पाक और शुद्ध हो जाता है, उसकी बरकत बढ़ती है और उसका दिल सखावत (दयानतदारी) की तरफ़ झुकता है। जो लोग अपने माल को खुदा की राह में खर्च करते हैं, उनके लिए कुरआन में बड़ा इनाम बताया गया है।
जकात किन्हें दी जाए और किन्हें नहीं?
कुरआन और हदीस की रोशनी में, जकात के हकदारों की एक स्पष्ट सूची दी गई है। सूरह अत-तौबा (9:60) में अल्लाह ने आठ प्रकार के लोगों को जकात के लिए योग्य बताया है:
फकीर (गरीब) – वे लोग जो अपनी आवश्यक जरूरतें पूरी नहीं कर सकते।
मिस्कीन (अत्यंत निर्धन) – वे लोग जो भुखमरी और कठिन हालात का सामना कर रहे हैं।
जकात इकट्ठा करने वाले अधिकारी – वे लोग जो जकात की व्यवस्था और वितरण में लगे रहते हैं।
मुसाफिर (यात्री) – जो यात्रा में किसी भी कारण से कठिनाई में पड़ गए हों।
कर्जदार – वे लोग जिन पर बहुत अधिक कर्ज हो और वे उसे चुकाने में असमर्थ हों।
अल्लाह की राह में खर्च करने वाले (जिहाद, इस्लामी शिक्षा, धर्म प्रचार आदि में लगे लोग)।
गुलामों को आज़ाद कराने के लिए।
नए मुसलमानों की मदद के लिए, ताकि वे इस्लाम को मजबूती से अपना सकें।
किन लोगों को जकात नहीं दी जा सकती?
अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी।
अपनी संतान (बेटे-बेटी) और पोते-पोतियां।
अमीर और संपन्न लोग।
किसी गैर-मुस्लिम को (लेकिन अगर वे इस्लाम में रुचि रखते हों या जरूरतमंद हों, तो विद्वानों से मशवरा लिया जा सकता है)।
जकात ना देने की सजा इस्लाम में और आखिरत में
मुफ्ती मोहम्मद यूनुस ने चेतावनी देते हुए कहा कि जो लोग जकात नहीं देते, उनके लिए कुरआन और हदीस में गंभीर अंजाम बताए गए हैं।
कुरआन में अल्लाह फरमाते हैं:
“जो लोग सोने और चांदी को इकट्ठा करते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते, उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी दे दो।” (सूरह अत-तौबा 9:34)
हदीस में भी जकात न देने वालों के लिए कड़ी सजा का जिक्र किया गया है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“जिसने जकात नहीं दी, क़यामत के दिन उसका सोना-चांदी आग के पट्टों में बदल दिया जाएगा और उसकी पीठ और माथे पर दागा जाएगा।” (सहीह मुस्लिम)
ऑनलाइन जकात: क्या यह जायज़ है?
तकनीकी विकास के इस युग में, ऑनलाइन माध्यम से जकात देना न केवल संभव है, बल्कि कई मामलों में अधिक पारदर्शी और व्यवस्थित भी है। मुफ्ती मोहम्मद यूनुस ने कहा कि जकात ऑनलाइन देने के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए:
विश्वसनीयता – जिस संस्था या व्यक्ति को जकात दी जा रही है, उसकी प्रमाणिकता सुनिश्चित करें।
शरीयत के अनुसार वितरण – यह देखना आवश्यक है कि ऑनलाइन माध्यम से दी गई जकात सही हकदारों तक पहुंच रही है या नहीं।
प्रमाणपत्र और पारदर्शिता – जिस संगठन को दान दिया जा रहा है, उसकी वित्तीय स्थिति और उपयोग की जानकारी प्राप्त करें।
कुछ विश्वसनीय ऑनलाइन जकात प्लेटफॉर्म:
इस्लामी रिलीफ फाउंडेशन
जमीयत उलेमा-ए-हिंद चैरिटेबल ट्रस्ट
लोकल मदरसे और चैरिटी संस्थान
मुफ्ती मोहम्मद यूनुस का जनता को संदेश
“इस्लाम हमें भाईचारे और जरूरतमंदों की मदद करने की सीख देता है। जकात केवल एक धार्मिक फर्ज़ नहीं, बल्कि सामाजिक उत्थान का एक अहम साधन है।”
मुफ्ती साहब ने कहा कि यदि हर सक्षम मुसलमान अपनी जकात समय पर अदा करे, तो समाज से गरीबी मिट सकती है। उन्होंने अपील की कि जकात को सही समय पर, सही लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करें।
“जकात केवल इबादत नहीं, बल्कि अल्लाह की तरफ से दिया गया एक इनाम है, जो हमें दूसरों की मदद करके जन्नत के रास्ते पर ले जाता है।”
जकात इस्लाम की एक अनिवार्य आर्थिक व्यवस्था है, जो संपन्न लोगों की संपत्ति को शुद्ध करती है और गरीबों की मदद करती है। यह न केवल हमें अल्लाह के करीब लाती है, बल्कि दुनिया और आखिरत में कामयाबी का जरिया भी बनती है। इसलिए, हर मुसलमान को चाहिए कि वह अपनी जकात समय पर अदा करे और इसे सही हकदारों तक पहुंचाए।