मुख्य संपादक – सैफ अली सिद्दीकी
हल्द्वानी। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय विशाल गोयल हल्द्वानी की अदालत ने चेक बाउंस के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए आरोपी प्रहलाद सिंह को दोषमुक्त करार दिया। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों और साक्ष्यों के आधार पर यह निर्णय सुनाया। प्रहलाद सिंह की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता मोहम्मद रिजवान ने इस फैसले को न्याय की जीत बताया और कहा कि उनका मुवक्किल बेगुनाह था, जिसे झूठे आरोपों में फंसाया गया था।

मामले की पूरी कहानी
यह मामला हल्द्वानी के निवासी सगीर अहमद द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने दावा किया था कि प्रहलाद सिंह ने उनसे उधार लिए गए पैसों के बदले एक ₹50,000 का चेक दिया था। जब सगीर अहमद ने यह चेक बैंक में लगाया, तो वह “ड्रॉअर सिग्नेचर डिफर” की टिप्पणी के साथ अनादरित (बाउंस) हो गया। इसके बाद उन्होंने न्यायालय में धारा 138 (परक्राम्य लिखत अधिनियम) के तहत मुकदमा दायर किया।

बचाव पक्ष की दलीलें
अदालत में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील मोहम्मद रिजवान ने यह तर्क दिया कि चेक बाउंस का यह मामला वास्तविक लेन-देन पर आधारित नहीं था, बल्कि यह चेक के दुरुपयोग का मामला था। उन्होंने अदालत को बताया कि प्रहलाद सिंह और सगीर अहमद के बीच किसी भी प्रकार का कोई वित्तीय लेन-देन नहीं हुआ था, और आरोप पूरी तरह से निराधार थे।
मोहम्मद रिजवान ने यह भी दलील दी कि चेक पर हस्ताक्षर प्रहलाद सिंह के नहीं थे, जिससे यह साबित होता है कि या तो चेक जबरन लिया गया था या फिर किसी अन्य उद्देश्य से दिया गया था और उसका गलत इस्तेमाल किया गया।
अदालत का फैसला
मामले की सुनवाई के दौरान, अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों की गहन समीक्षा की। चूंकि अभियोजन पक्ष यह प्रमाणित करने में असफल रहा कि वास्तव में प्रहलाद सिंह और सगीर अहमद के बीच कोई वित्तीय लेन-देन हुआ था, इसलिए अदालत ने यह निर्णय सुनाया कि आरोपी को दोषमुक्त किया जाए।
अदालत के इस फैसले के बाद प्रहलाद सिंह और उनके परिवार ने राहत की सांस ली। उन्होंने अदालत और अपने अधिवक्ता का धन्यवाद किया, जिन्होंने सच्चाई को साबित करने में उनकी मदद की।
अधिवक्ता मोहम्मद रिजवान की प्रतिक्रिया
इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए अधिवक्ता मोहम्मद रिजवान ने कहा,
“यह न्याय की जीत है। कई बार लोग बिना किसी ठोस आधार के झूठे मामले दर्ज करा देते हैं, जिससे निर्दोष व्यक्ति को परेशानी का सामना करना पड़ता है। हमने अदालत में साबित किया कि हमारा मुवक्किल निर्दोष है और उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि कानून सबके लिए समान है और सत्य की हमेशा जीत होती है।”
