राबिया आत्महत्या मामला: कोर्ट ने मोहम्मद हारून को दी सशर्त जमानत

मुख्य संपादक – सैफ अली सिद्दीकी

प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, हल्द्वानी कंवर अमनिन्दर सिंह की अदालत ने आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण के मामले में गिरफ्तार मोहम्मद हारून को शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। अधिवक्ताओं सुनील पुंडीर, पंकज कुमार और नीमा आर्या ने एकजुट होकर कोर्ट के समक्ष तथ्यों और परिस्थितियों का विस्तृत रूप से प्रस्तुतिकरण किया, जिसके आधार पर अदालत ने अभियुक्त को राहत दी।

क्या है मामला?

यह मामला थाना हल्द्वानी, जिला नैनीताल में दर्ज एफआईआर संख्या 139/2025 से संबंधित है, जिसमें धारा 108 बीएनएस (पूर्व में धारा 306 आईपीसी) के अंतर्गत अभियुक्त बनाया गया था। शिकायतकर्ता महबूब अली की पुत्री राबिया खातून ने 27 अप्रैल 2025 को आत्महत्या कर ली थी। एफआईआर मृतका के पिता द्वारा घटना के 13 दिन बाद, 10 मई को दर्ज कराई गई थी, जिसमें किसी विशेष व्यक्ति का नाम नहीं था।

शिकायतकर्ता ने सिर्फ इतना कहा कि उसकी बेटी को अज्ञात लोगों द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जिसके कारण उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

क्या कहा अधिवक्ताओं ने?

अधिवक्ताओं सुनील पुंडीर, पंकज कुमार और निमारिया ने न्यायालय के समक्ष सामूहिक रूप से दलील दी कि एफआईआर में अभियुक्त मोहम्मद हारून का नाम प्रारंभ में नहीं था और न ही उसके विरुद्ध कोई प्रत्यक्ष आरोप था। उन्होंने कहा कि एफआईआर में 13 दिन की देरी है, जिसका कोई स्पष्ट या तार्किक कारण नहीं बताया गया।

उन्होंने यह भी इंगित किया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में केवल गले पर फांसी के निशान हैं, जबकि मृतका का शव फर्श पर पड़ा पाया गया था — जो कि परिस्थितियों को संदिग्ध बनाता है और विवेचना में इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है।

अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड, बैंक ट्रांजैक्शन या पूर्व परिचय — इन तथ्यों से यह सिद्ध नहीं होता कि अभियुक्त ने जानबूझकर आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित किया। यदि मृतका और अभियुक्त के बीच संवाद या आर्थिक लेन-देन था, तो मात्र इसी आधार पर आत्महत्या के लिए प्रेरणा मान लेना न्यायोचित नहीं है।

पुलिस और अभियोजन का पक्ष

शासकीय अधिवक्ता डीएस मेहरा और अभियोजन के अन्य अधिवक्ताओं ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मृतका और अभियुक्त के बीच लम्बे समय से संवाद था, और वह उस पर विवाह का दबाव बना रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि अभियुक्त के व्यवहार से मानसिक दबाव के चलते मृतका ने यह कदम उठाया।

न्यायालय की टिप्पणी और आदेश

न्यायालय ने कहा कि धारा 108 बीएनएस के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि अभियुक्त ने प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कोई कार्य किया हो, जिससे मृतका को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा हो। केवल संवाद, संबंध या लेन-देन से यह साबित नहीं होता कि अभियुक्त ने आत्महत्या के लिए उकसाया।

अदालत ने यह भी कहा कि यदि अभियुक्त वास्तव में मृतका से विवाह करना चाहता था, तो यह तथ्य उसके विरुद्ध नहीं गिना जा सकता।

इन शर्तों पर मिली जमानत

  • अभियुक्त ₹40,000 का निजी मुचलका और दो जमानती पेश करेगा
  • अभियुक्त मृतका के परिजनों या गवाहों से कोई संपर्क नहीं करेगा
  • यदि आरोपपत्र दाखिल होता है, तो अभियुक्त न्यायालय में नियमित रूप से उपस्थित रहेगा
  • अभियुक्त भारत नहीं छोड़ेगा, जब तक न्यायालय की अनुमति न मिले

न्यायालय ने इस आदेश की प्रति संबंधित कारागार को अभियुक्त को सूचित करने के लिए प्रेषित करने के निर्देश भी दिए।


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